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पीलिया क्या होता है? कारण, लक्षण और उपचार

Medically Approved by Dr. Seema

Table of Contents

पीलिया लिवर से संबंधित ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा और आंखों का रंग पीला पड़ जाता है। इसे इंग्लिश में जॉन्डिस कहते हैं। पीलिया शरीर में पीले रंग के बिलीरुबीन नामक पदार्थ के अधिक स्तर के कारण होता है। लिवर खराब होने पर शरीर में जब बिलीरुबीन की मात्रा बढ़ जाती है तो ये रोग होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल गर्मी और मानसून के मौसम में इस बीमारी के मामले तेजी पकड़ते हैं। ये बीमारी वयस्कों की तुलना में नवजात बच्चों में ज्यादा होती है। पीलिया खून में इंफेक्शन या फिर लिवर की समस्या का संकेत देता है। अगर इसके लक्षणों को नजरंदाज किया जाए तो ये गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। इसलिए इस बीमारी के इलाज और प्रबंधन के लिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को समय रहते पहचान कर जरूरी बचाव और उपाय किए जाएं। चलिए इस लेख में जानते हैं कि पीलिया क्या होता है, पीलिया के लक्षण और कारण। साथ ही जानेंगे कि पीलिया कितने दिनों में ठीक होता है।

 

पीलिया क्या होता है?

पीलिया ऐसी स्थिति है जिसमें खून में बिलीरूबीन नामक पदार्थ का स्तर बढ़ जाता है जिससे स्किन और आंखों का रंग पीला पड़ने लगता है। आपको बता दें कि बिलीरूबीन एक पीला और नारंगी रंग का ऐसा पिगमेंट है जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने पर बनता रहता है। आमतौर पर लिवर बिलीरूबीन को शरीर से बाहर निकाल देता है। लेकिन जब लिवर सही से कामकाज करने में असमर्थ होता है या पित्त की नली में रुकावट आ जाती है तो शरीर में बिलीरुबीन का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में त्वचा और आंखें पीली दिखने लगती हैं।

 

पीलिया के लक्षण क्या हैं?

अगर लिवर हेपेटाइटिस ए या हेपेटाइटिस ई का शिकार हो जाए तो भी शरीर में बिलीरूबीन का स्तर (पीलिया के लक्षण इलाज) बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप ये बीमारी हो जाती है। पीलिया के लक्षण हर व्यक्ति में अलग अलग दिखते हैं। पीलिया के लक्षण इस प्रकार हैं –

 

  1. आंखों में पीलापन दिखाई देना, आंखों में पुतली के आस पास सफेद हिस्से पर पीलापन छा जाना
  2. स्किन पीली दिखना – त्वचा पीली दिखने लगती है।
  3. स्टूल का रंग हल्का हो जाना – स्टूल यानी मल का रंग हल्का भूरा या मिट्टी के रंग जैसा हो जाता है।
  4. गहरे रंग का यूरिन पास होना – मरीज के यूरिन का रंग गहरा भूरा या पीला दिखने लगता है।
  5. पेट में दर्द बने रहना – मरीज के पेट में दर्द होने लगता है।
  6. थकान और कमजोरी महसूस होना – मरीज को थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है।
  7. बुखार होना – कुछ मामलों में मरीज को बुखार आ जाता है।
  8. भूख न लगना या भूख मर जाना – मरीज की भूख लगातार कम होती रहती है।
  9. त्वचा पर खुजली होना – त्वचा पर अक्सर खुजली होने लगती है।
  10. कुछ मामलों में उल्टी या दस्त होना – मरीज को उल्टी और दस्त की समस्या हो सकती है।
  11. जोड़ों में दर्द होना – मरीज के जोड़ों में दर्द रहने लगता है।
  12. बिना किसी कारण मरीज का वजन एकाएक कम होने लगता है।

 

पीलिया के कारण क्या हैं?

पीलिया रोग संक्रामक नहीं होता है, इसलिए यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण बिलीरुबीन का ज्यादा उत्पादन है और उसका ज्यादा स्तर शरीर को कई प्रकार की दिक्कतों में डाल देता है। अगर शरीर में बिलीरूबीन के बनने, प्रोसेस होने और संशोधित होकर शरीर से बाहर निकलने की प्रक्रिया में बाधा आ रही है तो ये रोग होने लगता है। पीलिया के कारण इस प्रकार हैं –

 

  1. लाल रक्त कोशिकाओं का ज्यादा टूटना (Excessive red blood cell)
  2. वायरल हेपेटाइटिस इंफेक्शन जैसे हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई (Viral hepatitis infections)
  3. ज्यादा शराब के सेवन से लिवर डेमेज होना (Alcohol-related liver injury)
  4. जेनेटिक कंजुएशन डिस्ऑर्डर जैसे गिल्बर्ट सिंड्रोम (Genetic conjugation disorders – Gilbert syndrome)
  5. पित्त में पथरी होना (Gallstones)
  6. पित्त की नली में रुकावट आना (Bile duct obstruction)

 

पीलिया की जांच किस तरह की जाती है?

पीलिया के इलाज के लिए इसके सटीक कारण को जानना जरूरी है और इसके लिए इसकी कई तरह से जांच की जाती है। पीलिया के लक्षण की पहचान करके इसके सही इलाज के लिए इसकी सटीक जांच काफी महत्वपूर्ण साबित होती है। पीलिया की जांच इस तरह से की जाती है-

 

  1. स्किन और आंखों की जांच के लिए फिजिकल एक्जामिनेशन
  2. सीरम बिलीरूबीन टेस्ट– इस ब्लड टेस्ट के जरिए बिलीरूबीन के कुल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्तर को मापा जाता है।
  3. लिवर फंक्शन टेस्ट– इस टेस्ट में (ALT, AST, ALP, GGT) स्तर मापे जाते हैं।
  4. कंपलीट ब्लड काउंट– पूरे शरीर के खून की जांच के साथ-साथ पेरिफेरल स्मीयर टेस्ट किया जाता है।
  5. लिवर और पित्त की नली की जांच के लिए पेट का अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
  6. वायरल हेपेटाइटिस सीरोलॉजी (इसमें हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई मार्कर की जांच की जाती है)।
  7. पित्त की नली की इमेजिंग जांच के लिए मैग्नेटिक कोलेजनियोपैन्क्रिएटोग्राफी (MRCP) की जाती है।
  8. ऊपर लिखे टेस्ट के साथ-साथ डॉक्टर आगे की जांच के लिए सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट के साथ-साथ लिवर बायोप्सी की भी सलाह दे सकते हैं।

 

इस बीमारी के लक्षणों को अगर नजरंदाज किया जाए तो ये गंभीर समस्याओं की वजह बन सकती है। इसलिए इसके लक्षणों को समय रहते पहचान कर इसकी सही जांच और सटीक इलाज इसे रोकने के लिए प्रभावी साबित हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति में पीलिया के लक्षण दिख रहे हैं तो डॉक्टरी परामर्श लें। डॉक्टरी परामर्श के बाद बिलीरुबीन टेस्ट के लिए डॉ. लाल पैथलैब्स में शैड्यूल बुक करें। शैड्यूल बुक करने के लिए डॉ. लाल पैथलैब्स का ऐप डाउनलोड करें।

 

FAQ

क्या पीलिया का इलाज सही समय पर न होने पर ये लिवर की दीर्घकालिक क्षति का कारण बन सकता है?
हां, अगर पीलिया का सही समय पर इलाज न हो तो ये लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादा गंभीर होने पर लिवर डेमेज या लिवर फेल का रिस्क पैदा हो सकता है।

 

लाइफस्टाइल में कौन से बदलाव पीलिया के रिस्क को कम कर सकते हैं?
हाइजीन का पालन करना, शराब का कम सेवन, संतुलित डाइट का सेवन करने से लिवर की सेहत को मजबूत रखा जा सकता है और इस बीमारी के खतरे को रोका जा सकता है।

 

पीलिया कितने दिनों में ठीक होता है?
पीलिया के हल्के मामलों में रिकवरी में 1 से 2 हफ्ते का समय लगता है। जबकि इसके गंभीर मामलों में मरीज के ठीक होने में 2 सप्ताह से एक महीने तक का समय लग सकता है।

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