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थैलेसीमिया: लक्षण, प्रकार और उपचार

Medically Approved by Dr. Seema

Table of Contents

थैलेसीमिया (thalassemia) एक जेनेटिक यानी आनुवांशिक ब्लड डिस्ऑर्डर (genetic blood disorder) यानी रक्त विकार है जिसमें शरीर पर्याप्त तौर पर हीमोग्लोबिन (haemoglobin) बनाने में नाकामयाब होने लगता है। आपको बता दें कि हीमोग्लोबिन शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं (red blood cells) में मौजूद वो महत्वपूर्ण प्रोटीन है जो शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। जब शरीर में हीमोग्लोबिन बनना कम या बंद हो जाता है तो शरीर में खून की कमी होने लगती है और शरीर एनीमिया का शिकार हो जाता है। थैलेसीमिया ऐसी जेनेटिक बीमारी है जो बच्चों को उनके मां बाप से मिलती है। देखा जाए तो हल्के प्रकार के थैलेसीमिया में किसी खास उपचार की जरूरत नहीं होती है जबकि इसके मध्यम और गंभीर मामलों में नियमित तौर पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन यानी शरीर में खून बदलने की जरूरत पड़ती है। चलिए इस लेख में जानते हैं कि थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है और इसके लक्षण कैसे होते हैं। साथ ही इसके मैनेजमेंट के तरीकों के बारे में जानेंगे। सटीक मेडिकल जांच और हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए डॉ. लाल पैथलेब्स का ऐप डाउनलोड कीजिए।

 

थैलेसीमिया क्या है?

 

थैलेसीमिया एक जेनेटिक ब्लड डिस्ऑर्डर है, इस स्थिति में शरीर की हीमोग्लोबिन का उत्पादन करने की क्षमता कम होने लगती है जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम होने लगती है। ऐसी स्थिति में बोन मैरो (bone marrow ) यानी अस्थि मज्जा रेड ब्लड सेल्स का पर्याप्त निर्माण नहीं कर पाती है और शरीर में एनीमिया यानी खून की कमी हो जाती है। इसका सीधा असर शरीर के सभी अंगों में पर्याप्त ऑक्सीजन की सप्लाई पर पड़ता है। जब शरीर के सभी अंगों को समुचित ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है तो शरीर कमजोरी, चक्कर आना, सांस लेने में तकलीफ और बार बार इंफेक्शन का शिकार होने लगता है।

 

थैलेसीमिया किस कारण से होता है?

 

थैलेसीमिया ऐसे विकृत जीन (Faulty Genes) की वजह से होता है जो शरीर में हीमोग्लोबिन के पर्याप्त उत्पादन को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। दरअसल शरीर की हीमोग्लोबिन बनाने वाली सेल्स यानी कोशिकाओं के डीएनए में म्यूटेशन यानी उत्परिवर्तन होने के कारण हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। ये जीन और डीएनए म्यूटेशन बच्चों में उनके माता पिता की तरफ से आते हैं। आपको बता दें कि हीमोग्लोबिन में चार प्रोटीन चेन होती हैं। दो अल्फा ग्लोबिन (Alpha globin) और दो बीटा ग्लोबिन (Beta globin)। हर एक चेन में व्यक्ति के माता पिता से संबंधित जानकारी होती है। थैलेसीमिया की कंडीशन तब पैदा होती है जब अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोबिन चेन में से कोई जीन गायब हो या दोषपूर्ण हो।

 

थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है?

 

थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन बनाने वाली कोशिकाओं में डीएनए म्यूटेशन (mutations in the DNA of cells) के चलते होता है। ये डीएनए म्यूटेशन बच्चों को मां बाप की तरफ से मिलते हैं। थैलेसीमिया इस बात पर निर्भर करत है कि व्यक्ति को उसके मां बाप की तरफ से कितने जीन दोषपूर्ण मिले हैं या फिर कौन सी ग्लोबिन चेन प्रभावित है। इसके दो प्रकार होते हैं। अल्फा थैलेसीमिया और बीटा थैलेसीमिया।

 

  1. अल्फा थैलेसीमिया (Alpha Thalassemia) – अल्फा थैलेसीमिया तब होता है तो हीमोग्लोबिन बनाने वाली अल्फा ग्लोबिन चेन में कोई जीन दोषपूर्ण हो या गायब हो।
  2. बीटा थैलेसीमिया (Beta Thalassemia:)– बीटा थैलेसीमिया तब होता है जब हीमोग्लोबिन बनाने वाली बीटा ग्लोबिन चेन में कोई जीन दोषपूर्ण हो या गायब।

 

थैलेसीमिया के क्या लक्षण होते हैं?

थैलेसीमिया में हीमोग्लोबिन का उत्पादन कम होने पर शरीर में खून की कमी होने लगती है। इसके सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं –

 

  1. शरीर की ग्रोथ पर बुरा असर (Less body growth)
  2. हर वक्त थकान महसूस होना (Fatigue)
  3. कमजोरी महसूस होना (Feeling Weakness)
  4. चक्कर आना (Dizziness)
  5. त्वचा पर पीलापन आना और त्वचा पर सिकुड़न दिखना (pale, Yellowish and Shrinkage Skin)
  6. पेट में सूजन (Abdominal swelling)
  7. यूरिन का रंग गहरा हो जाना (Dark Urine)
  8. चेहरे की ह्डडियों में विकृति आना (Facial bone deformities)
  9. सांस लेने में तकलीफ (Problem in Breathing)
  10. पीलिया (Jaundice)
  11. भूख कम लगना (less Appetite )

 

थैलेसीमिया का उपचार कैसे किया जाता है?

देखा जाए तो थैलेसीमिया के हल्के मामलों में उपचार की जरूरत महसूस नहीं होती है। लेकिन इसके मध्यम और गंभीर मामलों के लिए कई तरह के उपचार किए जाते हैं।

 

  1. रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन (Regular Blood Transfusion) थैलेसीमिया के गंभीर मामलों में रेगुलर तौर पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है। इस प्रोसेस में किसी स्वस्थ व्यक्ति का खून और उसके तत्व मरीज के शरीर में डाले जाते हैं ताकि मरीज के शरीर में स्वस्थ खून की कमी के चलते कामकाज न रुकें.
  2. कैलेशन थैरेपी (Chelation Therapy) आयरन कैलेशन थैरेपी में बार बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण शरीर में अतिरिक्त आयरन को बाहर निकाला जाता है। इसकी मदद से बार बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के चलते शरीर के अंगों को होने वाली क्षति को रोका जाता है।
  3. स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant) ब्लड डोनर की तरफ से मरीज को स्टेम सेल का प्रत्यारोपण यानी ट्रांसप्लांट किया जाता है। देखा जाए तो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थैलेसीमिया का एकमात्र उपचार है।

 

थैलेसीमिया एक ऐसी आनुवांशिक बीमारी है जिसमें सटीक जांच और सही उपचार की जरूरत होती है। खासकर थैलेसीमिया के मध्यम और गंभीर मामलों में स्वस्थ आदतों और हेल्दी डाइट का पालन करके इसकी स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है। अगर किसी मरीज में ऊपर बताए गए लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टरी सलाह के बाद थैलेसीमिया प्रोफाइल टेस्ट के लिए डॉ. लाल पैथलैब्स में शैड्यूल बुक करें। टेस्ट बुक करने के लिए डॉ. लाल पैथलैब्स का ऐप डाउनलोड करें।

 

FAQ

थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा यानी लाइफ एक्सपेंटेसी कितनी होती है?

देखा जाए तो थैलेसीमिया के हल्के मामलों में मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। दूसरी तरफ थैलेसीमिया के मध्यम और गंभीर मामलों थोड़ा रिस्क जरूर होता है लेकिन सही इलाज के बल पर मरीज के स्वस्थ और लंबे जीवन की उम्मीद बनी रहती है।

 

प्रश्न – क्या थैलेसीमिया का इलाज संभव है ?

थैलेसीमिया के मरीजों के लिए एकमात्र उपचार स्टेम सेल ट्रांसप्लांट है। हालांकि ये ट्रांसप्लांट रिस्क से भरा हुआ हो सकता है और सबसे जरूरी बात कि इसके लिए सही डोनर मिलना काफी महत्वपूर्ण होता है।

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