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डबल मार्कर टेस्ट: यह क्या है और इसके दौरान क्या होता है?

Medically Approved by Dr. Seema

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डबल मार्कर टेस्ट प्रेग्नेंसी (double marker test in pregnancy) में किया जाने वाला एक ब्लड टेस्ट है जिसे डुअल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) और मेटरनल सीरम स्क्रीनिंग (Maternal Serum Screening) भी कहा जाता है। इस टेस्ट को प्रेग्नेंसी (double marker test in pregnancy) की पहली तिमाही यानी पहले ट्राईमेस्टर में किया जाता है। डबल मार्कर टेस्ट की मदद से मां के पेट में पल रहे भ्रूण में क्रोमोसोमल असामान्यताओं (chromosomal abnormality) जैसे डाउन सिंड्रोम, पटाऊ सिंड्रोम और एडवर्ड सिंड्रोम का पता लगाने में मदद मिलती है। इस टेस्ट के दौरान गर्भवती महिला के खून के सैंपल की सीरम स्क्रीनिंग की जाती है। इस स्क्रीनिंग टेस्ट के आधार पर डॉक्टर ये तय करते हैं कि क्या आगे और जरूरी टेस्ट करने की जरूरत है। ये टेस्ट अजन्मे बच्चे के शरीर में आनुवांशिक बीमारियों के खतरों का आकलन करके माता-पिता को प्रेग्नेंसी से पहले ही निर्णय लेने में मदद करता है। इस लेख में जानते हैं कि प्रेग्नेंसी में किया जाने वाला डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) क्या है और इसे कैसे किया जाता है। साथ ही जानेंगे इस टेस्ट के रिजल्ट कैसे देखे जाते हैं।

 

डबल मार्कर टेस्ट क्या है?

डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) यानी डुअल मार्कर टेस्ट एक मेटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट है जिसे आमतौर पर न्यूकल ट्रांसलूसेंसी (NT) स्कैन के साथ किया जाता है। डबल मार्कर टेस्ट (ड्यूल मार्कर टेस्ट इन प्रेगनेंसी) बच्चे को मां से मिलने वाली गुणसूत्र यानी क्रोमोसोमल असामान्यताओं से जुड़े संभावित खतरों का आकलन करता है। इन खतरों में कई जेनेटिक डिस्ऑर्डर जैसे डाउन सिंड्रोम (Down syndrome-Trisomy 21), पटाऊ सिंड्रोम (Patau’s syndrome-Trisomy 13) और एडवर्ड सिंड्रोम (Edward’s syndrome -Trisomy 18) शामिल हैं।

ये टेस्ट (double marker test in hindi) के रिजल्ट मां के खून में मौजूद दो मार्करों पर निर्भर करते हैं जो इस प्रकार हैं –

  1. ह्यूम कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (Human Chorionic Gonadotropin – HCG): ये मां के प्लेसेंटा से रिलीज होने वाला एक ग्लाइकोप्रोटीन हार्मोन है।
  2. प्रेग्नेंसी रिलेटेड प्लाजमा प्रोटीन (Pregnancy-associated plasma protein-A – PAPP-A): मां के शरीर में नैचुरल तौर पर पाया जाने वाला एक प्लाजमा प्रोटीन।

आनुवांशिक जटिलताओं का पता लगाने वाले इस टेस्ट (double marker test in hindi) को एक पूर्वानुमान लगाने वाले टेस्ट के रूप में देखा जा सकता है। दरअसल ये क्रोमोसोम में किसी असामान्यता को कंफर्म नहीं करता है लेकिन इसके खतरों के स्तर का अनुमान लगाता है।

 

डबल मार्कर टेस्ट कैसे किया जाता है

डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) एक त्वरित यानी कम समय में होने वाला और नॉन सर्जिकल प्रोसेस है। इस टेस्ट को दो चरणों में किया जाता है।

  1. सैंपल कलेक्शन (Sample collection): मां के खून के सैंपल के साथ न्यूकल ट्रांसलूसेंसी स्कैन की एक कॉपी भी ली जाती है।
  2. लैब टेस्टिंग (Laboratory testing): इन सभी सैंपल की लैबोरेटरी में जांच की जाती है। मां के खून में एचसीजी और पीएपीपी-ए के लेवल का आकलन किया जाता है।

डबल मार्कर टेस्ट (डबल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू) का मूल्यांकन दोनों ब्लड मार्करों के लेवल, एनटी स्कैन और मां की उम्र के आधार पर किया जाता है। डुअल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट ये बताती है कि प्रेग्नेंसी में क्रोमोसोमल असामान्यताओं का रिस्क कम है या ज्यादा। इस रिपोर्ट के आधार पर ही माता-पिता प्रेग्नेंसी में आगे के फैसले ले पाते हैं।

 

डबल मार्कर टेस्ट का रिजल्ट कैसे देखा जाता है?

डुअल मार्कर टेस्ट का रिजल्ट रेशियो स्तर यानी अनुपात के रूप में दिखाया जाता है। टेस्ट के रिजल्ट दो प्रकार में सामने आते हैं –

  • Low Risk – लो रिस्क (कम जोखिम): ये एक सामान्य रिजल्ट (डबल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू) है। एक उच्च रेशियो, जैसे 1:1000 ये दिखाता है कि होने वाले बच्चे के क्रोमोसोम में असामान्यताओं के साथ पैदा होने की संभावना 1000 में से महज 1 है।
  • High Risk – हाई रिस्क (ज्यादा जोखिम): ये रिजल्ट बच्चे के क्रोमोसोम में असामान्यताओं की पूरी पुष्टि नहीं करता लेकिन आगे के परीक्षण की संभावना पर जोर देता है, जैसे – 1:250 या उससे कम का रेशियो (डबल मार्कर टेस्ट नेगेटिव मीन्स)।

आपको बता दें कि डुअल मार्कर टेस्ट में एचसीजी का हाई लेवल और पीएपीपी -ए का लो लेवल डाउन सिंड्रोम जैसी असामान्यताओं (डबल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू) का संकेत दे सकता है।

डुअल मार्कर टेस्ट प्रेग्नेंसी (double marker test in pregnancy) के दौरान क्रोमोसोम से जुड़ी असमान्यताओं की जांच में मददगार साबित होता है। इसी के आधार पर नॉन इनवेसिव प्रीनेटल स्क्रीनिंग (Non-Invasive Prenatal Testing – NIPT) जैसे आगे के टेस्ट की जरूरत के संकेत मिलते हैं। प्रेग्नेंसी (ड्यूल मार्कर टेस्ट इन प्रेगनेंसी) के दौरान प्रारंभिक टेस्ट के विकल्पों के लिए डॉक्टरी सलाह जरूर लें। डॉक्टरी सलाह के बाद डॉ. लाल पैथलैब्स में डुअल मार्कर टेस्ट (ड्यूल मार्कर टेस्ट इन प्रेगनेंसी) बुक करवाएं। शेड्यूल बुक करने के लिए डॉ. लाल पैथलैब्स का ऐप डाउनलोड करें।

 

FAQ

क्या डबल मार्कर टेस्ट अनिवार्य होता है?
नहीं, डुअल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) अनिवार्य नहीं होता है। हालांकि 35 साल से ज्यादा की प्रेग्नेंट महिलाओं और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं के लिए इस टेस्ट को कराना जरूरी समझा जाता है।

क्या डबल मार्कर टेस्ट सभी जन्मजात विकलांगताओं का पता लगाने में मददगार होता है?
नहीं, डुअल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) जन्म से जुड़ी सभी विकलांगताओं का पता नहीं लगा पाता है। ये टेस्ट केवल क्रोमोसोमल स्थितियों और असामान्यताओं का पता लगा सकता है।

मासिक धर्म के दौरान डबल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू क्या है?
सामान्य अवस्था में डुअल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू लगभग 1.0 होती है। जबकि मासिक धर्म के दौरान डबल मार्कर टेस्ट नॉर्मल वैल्यू 0.5 और 2.5 भी स्वीकार की जाती है।

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